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हमारा युग निर्माण सत्संकल्प ।।

—हम ईश्वर को सर्वव्यापी, न्यायकारी मानकर उसके अनुशासन को अपने जीवन में उतारेंगे। —शरीर को भगवान् का मंदिर समझकर आत्म- संयम और नियमितता द्वार...

हमारा युग निर्माण सत्संकल्प ।।

Posted by Padhayi Adda

—हम ईश्वर को सर्वव्यापी, न्यायकारी मानकर उसके अनुशासन को अपने जीवन में उतारेंगे।

—शरीर को भगवान् का मंदिर समझकर आत्म- संयम और नियमितता द्वारा आरोग्य की रक्षा करेंगे।

—मन को कुविचारों और दुर्भावनाओं से बचाए रखने के लिए स्वाध्याय एवं सत्संग की व्यवस्था रख रहेंगे।

—इंद्रिय संयम, अर्थ संयम, समय संयम और विचार संयम का सतत अभ्यास करेंगे।

— अपने आपको समाज का एक अभिन्न अंग मानेंगे और सबके हित में अपना हित समझेंगे।

—मर्यादाओं को पालेंगे, वर्जनाओं से बचेंगे, नागरिक कर्तव्यों का पालन करेंगे और समाजनिष्ठ बने रहेंगे।

—समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी और बहादुरी को जीवन का एक अविच्छिन्न अंग मानेंगे।

—चारों ओर मधुरता, स्वच्छता, सादगी एवं सज्जनता का वातावरण उत्पन्न करेंगे।

— अनीति से प्राप्त सफलता की अपेक्षा नीति पर चलते हुए असफलता को शिरोधार्य करेंगे।

—मनुष्य के मूल्यांकन की कसौटी उसकी सफलताओं, योग्यताओं एवं विभूतियों को नहीं, उसके सद्विचारों और सत्कर्मों को मानेंगे।

—दूसरों के साथ वह व्यवहार न करेंगे, जो हमें अपने लिए पसंद नहीं।

—नर- नारी परस्पर पवित्र दृष्टि रखेंगे।

—संसार में सत्प्रवृत्तियों के पुण्य प्रसार के लिए अपने समय, प्रभाव, ज्ञान, पुरुषार्थ एवं धन का एक अंश नियमित रूप से लगाते रहेंगे।

—परम्पराओं की तुलना में विवेक को महत्त्व देंगे।

—सज्जनों को संगठित करने, अनीति से लोहा लेने और नव- सृजन की गतिविधियों में पूरी रुचि लेंगे।

—राष्ट्रीय एकता एवं समता के प्रति निष्ठावान् रहेंगे। जाति, लिंग, भाषा, प्रांत, सम्प्रदाय आदि के कारण परस्पर कोई भेदभाव न बरतेंगे।

—मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है, इस विश्वास के आधार पर हमारी मान्यता है कि हम उत्कृष्ट बनेंगे और दूसरों को श्रेष्ठ बनाएँगे, तो युग अवश्य बदलेगा।

—‘‘हम बदलेंगे- युग बदलेगा’’, ‘‘हम सुधरेंगे- युग सुधरेगा’’ इस तथ्य पर हमारा परिपूर्ण विश्वास है।


मैं तो मोहब्बत का, वो नगमा छोड़ आया !

Posted by Padhayi Adda

मैं तो जमीं तो जमीं, आसमाँ छोड़ आया,
जाने कितने दिलों की, दास्तां छोड़ आया !


मैं यादों के झरोखों से देखता हूँ अब भी,
कि बदन साथ था, पर आत्मा छोड़ आया !


किस से कहूँ मैं अपना दर्दे दिल आखिर,
मैं तो मोहब्बत का, वो नगमा छोड़ आया !


किसमें सुख ढूंढ़ रहे हो आप ।।

Posted by Padhayi Adda

10 साल पहले पड़ोसियों के घर में मैच को उनकी टीवी पे देखने में बड़ा सुख था पर आज खुद के घर की टीवी में सुख नहीं मिलता ।

10 साल पहले सादा फोन में भी सुखी लगते थे पर आज एप्पल के आईफोन में भी खुशी नहीं मिलती ।

10 साल पहले सादा साईकिल में भी सुख था पर आज 10,000 की रेंजर साईकिल में भी सुखी नहीं लग रहे ।

10 साल पहले जो सुख लुप धुप वाली 50 रूपए की घड़ी में था आज स्मार्टवॉच में भी वो खुशी नहीं मिलती ।

10 साल पहले 1 जोड़ी नए कपड़े खरीदे जाने पे जो सुख महसूस होता था , आज 4 जोड़ी खरीदने पे भी कुछ महसूस नहीं होता ।

10 साल पहले 200 रूपए के जूते में जो खुशी मिलती थी वो आज 5000 वाले में नहीं मिलती

कुछ ही साल पहले जो मज़ा स्पलेंडर बाइक आता था वो आनन्द अब केटीएम/पल्सर/अपाचे बाइक में भी नहीं आता । 

10 साल पहले दिन में 4 घंटे बिजली और बिना फ्रिज/कूलर/AC के भी अच्छा सुख महसूस होता था पर आज 24 घंटे इनवर्टर और सभी सुविधाओं में भी सामान्य ही महसूस होता है

कुल मिलाकर 10 साल में अधिक से अधिक व अच्छी भैतिक सुख सुविधाओं के होने के बावजूद हम लोग पहले जितने सुखी महसूस नहीं होते ।

और आज भी जिन भौतिक वस्तुओं, गहने,प्लाट, बड़ा घर, बड़ी गाड़ी/ भोग विलास को सुख समझ कर उनके पीछे अंधे होकर दौड़ में लगे हैं, एक समय आएगा कि वो सब चीजें पाकर भी आप खुश नहीं हो पाओगे, उन सब चीजों को पाने के बाद भी खालीपन लगेगा और अपने आप को सुखी नहीं होता पाओगे व अशांत ही रहोगे । 

हीरों का हार !!

Posted by Padhayi Adda

पुराने समय में किसी शहर में एक जौहरी रहता था, उसकी असमय मृत्यु हो गई। उसके परिवार में पत्नी और उसका एक बेटा था। जौहरी की मृत्यु के बाद उनके परिवार में पैसों की कमी आ गई। एक दिन मां ने अपने बेटे को हीरों का हार दिया और कहा कि “इसे अपने चाचा की दुकान पर बेच दो, इससे जो पैसा मिलेगा, वह हमारे काम आएगा।”

लड़का हार लेकर अपने चाचा की दुकान पर पहुंच गया। चाचा ने हार देखा और कहा “बेटा अभी बाजार मंदा चल रहा है, इस हार को बाद में बेचना। तुम्हें पैसों की जरूरत है तो अभी मुझसे ले लो। तुम चाहो तो मेरी दुकान पर काम भी कर सकते हो।” 

लड़के ने चाचा की बात मान ली और अगले दिन से लड़का अपने चाचा की दुकान पर काम करने लगा। समय के साथ वह लड़का भी हीरों की अच्छी परख करने लगा था। वह असली और नकली हीरे को तुरंत ही पहचान लेता था। 

एक दिन उसके चाचा ने कहा “अभी बाजार बहुत अच्छा चल रहा है, तुम अपना हीरों का हार बेच सकते हो।” 
लड़का अपनी मां से वह हार लेकर दुकान आ गया और चाचा को दे दिया। लड़के से उसके चाचा ने कहा “अब तो तुम खुद भी हीरों की परख कर लेते हो, इस हार को देखकर इसकी कीमत का अंदाजा लगा सकते हो। इसीलिए तुम खुद इस हार की परख करो।” लड़के ने हार को ध्यान से देखा तो उसे मालूम हुआ कि हार में नकली हीरे लगे हैं और इसकी कोई कीमत नहीं है।

लड़के ने पूरी बात बताई तो चाचा ने कहा “मैं तो शुरू से जानता हूं कि ये हीरे नकली हैं, लेकिन अगर मैं उस दिन तुम्हें ये बात कहता तो तुम मुझे ही गलत समझते। तुम्हें यही लगता कि मैं ये हार हड़पना चाहता हूं, इसीलिए इसे नकली बता रहा हूं। तुम्हें उस समय हीरों का कोई ज्ञान नहीं था। बुरे समय में अज्ञान की वजह से हम अक्सर दूसरों को ही गलत समझते हैं।”

शिक्षा:-
विपरीत समय में हमारे ऊपर निगेटिविटी हावी हो जाती है और सोचने-समझने की शक्ति कमजोर होने लगती है। ऐसी स्थिति में की गई जल्दबाजी से नुकसान हो सकता है, रिश्ते खराब भी हो सकते हैं। इसीलिए बुरे समय में धैर्य से काम लेना चाहिए। 

सदैव प्रसन्न रहिये।
जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।

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चार दोस्त ।।

Posted by Padhayi Adda

स्कूल के चार करीबी दोस्तों की आंखें नम करने वाली कहानी है..जिन्होंने एक ही स्कूल में एसएससी तक पढ़ाई की है..उस समय शहर में इकलौता लग्जरी होटल था.।
एसएससी की परीक्षा के बाद उन्होंने तय किया कि हमें उस होटल में जा कर चाय-नाश्ता करना चाहिए..उन चारों ने मुश्किल से चालीस रुपये जमा किए, रविवार का दिन था, साढ़े दस बजे वे चारों साइकिल से होटल पहुंचे।..

दिनेश, संतोष, मनीष और प्रवीण चाय-नाश्ता करते हुए बातें करने लगे..उन चारों ने सर्वसम्मति से फैसला किया कि पचास साल बाद हम 01 अप्रैल को इस होटल में फिर मिलेंगे..तब तक हम सब को बहुत मेहनत करनी चाहिए, यह देखना दिलचस्प होगा कि इसमें किसकी कितनी प्रगति हुई है..जो दोस्त उस दिन बाद में होटल आएगा उसे उस समय का होटल का बिल देना होगा..।  
उनको चाय नाश्ता परोसने वाला वेटर कालू यह सब सुन रहा था, उसने कहा कि अगर मैं यहां रहा तो मैं इस होटल में आप सब का इंतजार करूंगा.।
आगे की शिक्षा के लिए चारों अलग अलग हो गए..
 दिनेश के पिता के बदली होने पर वह शहर छोड़ चुका था, संतोष आगे की पढ़ाई के लिए अपने चाचा के पास चला गया, मनीष और प्रवीण को शहर के अलग-अलग कॉलेजों में दाखिला मिला. आखिरकार मनीष भी शहर छोड़कर चला गया..।
  
दिन, महीने, साल बीत गए.. पचास वर्षों में उस शहर में आमूल-चूल परिवर्तन आया, शहर की आबादी बढ़ी, सड़कों, फ्लाईओवर, महानगरों ने शहर की सूरत बदल दी। अब वह होटल भी फाइव स्टार होटल बन गया था, वेटर कालू अब कालू सेठ बन गया और इस होटल का मालिक बन गया..। 
  
पचास साल बाद, निर्धारित तिथि, 01 अप्रैल को दोपहर में, एक लग्जरी कार होटल के दरवाजे पर आई..*दिनेश कार से उतरा और पोर्च की ओर चलने लगा, दिनेश के पास अब तीन ज्वैलरी शो रूम हैं.।

दिनेश होटल के मालिक कालू सेठ के पास पहुँचा, दोनों एक दूसरे को देखते रहे..।

कालू सेठ ने कहा कि प्रवीण सर ने आपके लिए एक महीने पहले एक टेबल बुक किया है.।
दिनेश मन ही मन खुश था कि वह चारों में से पहला था, इसलिए उसे आज का बिल नहीं देना पड़ेगा, और वह इसके लिए अपने दोस्तों का मजाक उड़ाएगा.।

एक घंटे में संतोष आ गया, संतोष शहर का बड़ा बिल्डर बन गया.।
अपनी उम्र के हिसाब से वह अब एक सीनियर सिटिजन की तरह लग रहे था..अब दोनों बातें कर रहे थे और दूसरे मित्रों का इंतजार कर रहे थे।

तीसरा मित्र मनीष आधे घंटे में आ गया..उससे बात करने पर दोनों को पता चला कि मनीष बिजनेसमैन बन गया है।

तीनों मित्रों की आँखें बार बार दरवाजे पर जा रही थीं, प्रवीण कब आएगा..?
इतनी देर में कालू सेठ ने कहा कि प्रवीण सर की ओर से एक मैसेज आया है, तुम चाय नाश्ता शुरू करो, मैं आ रहा हूँ.।

तीनों पचास साल बाद एक-दूसरे से मिलकर खुश थे..घंटों तक मजाक चलता रहा, लेकिन प्रवीण नहीं आया..।
कालू सेठ ने कहा कि फिर से प्रवीण सर का मैसेज आया है, आप तीनों अपना मनपसंद मेन्यू चुनकर खाना शुरू करें..।

खाना खा लिया तब भी प्रवीण नहीं दिखा, बिल माँगने पर तीनों को जवाब मिला कि ऑनलाइन बिल का भुगतान हो गया है..। 
   
शाम के आठ बजे एक युवक कार से उतरा और भारी मन से निकलने की तैयारी कर रहे तीनों मित्रों के पास पहुँचा, तीनों उस आदमी को देखते ही रह गए.।

युवक कहने लगा, मैं आपके दोस्त का बेटा रवि हूँ, मेरे पिता का नाम प्रवीण भाई है..।
पिताजी ने मुझे आज आपके आने के बारे में बताया, उन्हें इस दिन का इंतजार था, लेकिन पिछले महीने एक गंभीर बीमारी के कारण उनका निधन हो गया..।
उन्होंने मुझे यहाँ देर से पहुँचने का आदेश दिया था। पिताजी ने कहा था कि अगर मैं जल्दी निकल गया और जब मेरे साथियों को पता चलेगा कि मैं इस दुनिया में नहीं हूँ तो वे दुखी होंगे, मेरे दोस्त तब नहीं हँसेंगे और वे एक-दूसरे से मिलने की खुशी खो देंगे..
इसलिए उन्होंने मुझे देर से आने का आदेश दिया..
उन्होंने मुझे उनकी ओर से आपको गले लगाने के लिए भी कहा था। रवि ने अपने दोनों हाथ फैला दिए..।

आसपास के लोग उत्सुकता से इस दृश्य को देख रहे थे, उन्हें लगा कि उन्होंने इस युवक को कहीं देखा है..।
रवि ने कहा कि मेरे पिता शिक्षक बने, मुझे पढ़ाकर कलेक्टर बनाया, आज मैं इस शहर का कलेक्टर हूँ..।  
सब चकित थे, कालू सेठ ने कहा कि अब पचास साल बाद नहीं बल्कि हर पचास दिन में हम अपने होटल में बार-बार मिलेंगे, और हर बार मेरी तरफ से एक भव्य पार्टी होगी..।

अपने सगे-सम्बन्धियों से मिलते रहो, दोस्तों मिलने के लिए बरसों का इंतजार मत करो, जाने किस की बिछड़ने की बारी आ जाए और पता ही नही चले..।
परिवार के साथ रहें, जिंदा होने की खुशी महसूस करें।


सदैव प्रसन्न रहिये।
जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।

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